Sunday, September 27, 2009

रोम जिंदा है, आज भी

-अजय ब्रह्मात्मज


रोम जाने के पहले मेरे मन में स्वाभाविक जिज्ञासा और उत्सुकता थी। मैंने रोम जा चुके परिचितों, मित्रों और रिश्तेदारों से अपनी खुशी बांटते हुए रोम के बारे में पूछा था। यकीन करें रोम की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, वहां के वास्तुशिल्प और प्राचीन इमारतों, महलों और चर्च के साथ लोगों ने आधुनिक रोम के बारे में भी बताया था। एक तरफ उन्होंने रोम की ऐतिहासिक विरासत के साक्षात्कार से धन्य होने की अग्रिम बधाई दी थी तो दूसरी तरफ स्पष्ट शब्दों में सावधान किया था कि वहां चोरी और उठाईगीरी आम है। आंख बंद और डब्बा गायब मुहावरे की प्रतिध्वनि उनकी हिदायतों में थी। और रोम जाने के बाद उनकी हिदायत याद भी आई।

भारत के कुछ पत्रकार मित्रों के साथ मैंने सडक के रास्ते रोम में प्रवेश किया था। मुझे हमेशा लगता रहा है कि अगर आप निजी व्यवस्था से अपनी सवारी लेकर किसी शहर में प्रवेश करते हैं तो वह लगभग चोर रास्ते या पिछले रास्ते से घर में दाखिल होने जैसा होता है। शहर आपका औपचारिक स्वागत नहीं करता। औपचारिक स्वागत एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड पर ही होता है। वहां आगंतुकों को औपचारिकताएं पूरी करने के साथ शहर से हाथ मिलाने का मौका मिलता है। मैं तो सुबह-सुबह ऊंघते शहर में चुपके से घुस आया था और जब तक शहर अंगडाई लेकर दिन के लिए खडा हुआ, मैं शहर से गलबहियां किए उसकी गलियों में घूम रहा था।

हम लोग रोम के पडोसी शहर नैपोली से आए थे। इरादा यह था कि होटल में जल्दी से चेक इन कर शहर घूमने निकल जाएंगे। चूंकि वक्त कम था, इसलिए हमारे मेजबान की योजना थी कि हम सभी मिनी वैन से शहर की सरसरी तौर पर यात्रा कर लेंगे। मेजबान के मंसूबे पर हमने पानी फेर दिया था। हमने तय किया कि हम शहर तसल्ली से घूमेंगे। वहां की सडकों पर चलेंगे। वास्तु व इमारतों को छुएंगे। लोगों से बातें करेंगे। हाथ और आंख मिलाएंगे और मुस्कराएंगे। एक दोस्त की टिप्पणी थी कि दूसरे देशों की तरह यहां के लोग अपरिचितों को देख कर मुस्कराते नहीं है। तभी पास आकर एक मोटरसाइकिल रुकी। उस पर दो नौजवान बैठे थे। मैंने अपना कैमरा उनकी तरफ किया तो वे पलटकर मुस्कराए और उन्होंने हाथ हिलाकर अभिवादन भी किया। शायद मुस्कराहट भी इश्क की तरह है। दोनों सिरे से आग लगे तभी इसका आदान-प्रदान होता है।

बचपन से सुनता आ रहा था यूनान, मिस्त्र, रोमां सब मिट गए जहां से, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। इन पंक्तियों का असर रूहानी था। हमने सोच लिया था कि रोम अब सिर्फ इतिहास के पन्नों या पर्यटन सूचना के निमित्त खींची गई तस्वीरों में कैद है। होगा कोई संग्रहालय, जहां रोम के स्वर्णिम इतिहास को कांच के भीतर संजो कर रखा गया होगा। बगल में सूचनाओं की पट्टी लगी होगी और शब्दों में गौरवशाली इतिहास का ब्योरेवार बखान होगा। यह मालूम था कि कुछ प्राचीन इमारतें देखने को मिलेंगी, लेकिन यह एहसास नहीं था कि वे इस कदर हमारे करीब होंगी कि हम उनमें से गुजर सकेंगे। दो हजार साल पहले चिने गए फर्श पर हम देसी जूते पहने आराम से टहल सकेंगे। हम उनकी पृष्ठभूमि में अपनी तस्वीरे खींच सकेगे।

रोम में इतिहास और वर्तमान के बीच कोई दीवार नहीं खींची गई है। ना ही उनकी घेराबंदी कर उन्हें पुरातत्व या संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया। आप अभी एक सुपरमार्केट से निकलें और गली पार कर हजारों साल पुरानी किसी इमारत में घुस जाएं। शहर के हर कोने और नुक्कड पर इतिहास खडा नजर आता है और अपने पास बुलाता है। यह डराता नहीं है, क्योंकि अन्य देशों की तरह उन्हें अलग और कथित तौर पर सुरक्षित नहीं रखा गया है। रोम में इतिहास हमारा आलिंगन करता है। उसकी गोद में बैठकर हम चाहें तो सदियों के पदचाप को सुन सकते हैं। वहां की हवा में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धुन मौजूद है, जो आधुनिक शोर में दबी नहीं है, बल्कि उससे मिल कर एक नई मधुर सिंफनी पैदा करती है। रोम में घूमते हुए तन पुलकित होता है और मन एक पींग में हजारों साल आगे-पीछे चला जाता है।

हम लोगों ने मुख्य रूप से कोलोसियम और वैटिकन सिटी के सेंट पीटर्स स्क्वॉयर का भरपूर आनंद लिया। हम वैटिकन सिटी के उस भव्यतम चर्च में भी गए, जिसके बारे में कहा जाता है कि उसके बाद किसी और चर्च में जाने और उसे देखने की जरूरत नहीं रह जाती। वैटिकन सिटी हमारी संक्षिप्त यात्रा में शामिल नहीं की गई थी। हमें समझाया गया था कि उसके लिए पहले से व्यवस्था करनी पडती है, लेकिन जहां चाह है, वहां राह है। हमारी गाइड जोवानी ने जुगाड लगा दिया। उसने हमें आराम से उस चर्च में प्रवेश करवा दिया और स्लीवलेस ड्रेस में साथ गई लडकियों के लिए आनन-फानन में बांहों को ढकने के लिए स्कार्फ की व्यवस्था भी करवा दी। हां, इस चर्च में स्लीवलेस ड्रेस पहन कर आप नहीं जा सकते और सिर पर कोई टोपी नहीं हो सकती। इस चर्च में रोमन कैथोलिक संप्रदाय के प्रमुख पोप भी आते हैं। जब वे वैटिकन सिटी में होते हैं तो आप उन्हें चर्च के बाहर लगे विशालकाय टीवी पर देख-सुन सकते हैं। हमें बताया गया कि उनका आवास चर्च से सटा हुआ है। हमारे प्रवास के समय वह छुट्टी पर थे। वैटिकन सिटी संप्रभुता संपन्न है। यहां इटली के नियम-कानून नहीं चलते। कोलोसियम अद्भुत ऐतिहासिक वास्तु है। हजारों सालों से धूप, पानी, प्राकृतिक विपदा और राजनीतिक संकटों से गुजरने के बाद भी इसकी भव्यता और रौनक मानव इतिहास की उस बलवती चाहत का सबूत है कि मनोरंजन के लिए हमारे पूर्वजों की सोच आधुनिक जगत से वृहत और विशद थी। ईसा से 700 साल पहले इस शहर की नींव रखी गई थी और तब केवल तीस हजार की आबादी थी। 70-75 ई में वेस्पेसियन राजा के काल में कोलोसियम के निर्माण की शुरुआत हुई और टाइटस के जमाने में यह पूरा हो सका। कोलोसियम वास्तव में प्राचीन स्टेडियम की तरह है, जहां खेल-कूद और मनोरंजन का आयोजन हुआ करता था। इसमें 60,000 लोग बैठ सकते थे। और कोलोसियम के इतने द्वार रखे गए थे कि विभिन्न तबके के दर्शक अलग-अलग रास्तों से सुनिश्चित सीटों तक पहुंच सकें। उन्हें एक-दूसरे की राह नहीं काटनी पडती थी। भूकंपों के बाद कोलोसियम अब आधा-अधूरा बचा है, लेकिन उसकी भव्यता नष्ट नहीं हुई है। वह आज भी पूरी है। आज भी इसकी विशालता और बीच का मैदान देखकर उस हुंकार को सुना और समझा जा सकता है, जो ग्लैडिएटरों की लडाई के समय भरा जाता होगा। कहते हैं कोलोसियम में आयोजित खेल-कूद और खतरनाक आयोजनों में कम से कम पांच लाख व्यक्तियों और दस लाख से अधिक जानवरों की जानें गई होंगी।

मिटा नहीं है रोम। वह जिंदा है और उसकी धडकनों को आसानी से सुना जा सकता है। रोम प्राचीन शहर है, लेकिन वह उतना ही आधुनिक और माडर्न भी है। मुझे इस बात की खुशी है कि मैं वहां की हवा में सांस लेकर लौटा और अपने साथ उस इतिहास का स्पर्श ले आया। हम लोग रोम के मशहूर पब में भी गए। जहां डीजे ने हमें देखते ही पंजाबी भांगडा सुनाना चालू कर दिया। हम आकाश के सलेटी होने और पब के दरवाजे बंद होने तक वहां रहे। जैसे चुपके से हमने शहर में प्रवेश किया था। वैसे ही रोम के जागने के पहले हम एयरपोर्ट पहुंच चुके थे। वहां से हमें फ्रांस की राजधानी पेरिस जाना था।