Tuesday, July 28, 2009

डेली रूटीन से ऊब जाता हूं: सैफ


-अजय ब्रह्मात्मज


छोटे नवाब के नाम से मशहूर सैफ अली खान अब निर्माता बन गए हैं। उनके प्रोडक्शन हाउस इलुमिनाती फिल्म्स की पहली फिल्म लव आज कल इस शुक्रवार को रिलीज हो रही है। फिल्म के निर्देशक इम्तियाज अली हैं और हीरोइन दीपिका पादुकोण हैं। लव आज कल की रिलीज के पहले खास बातचीत।
आप उन खास और दुर्लभ बेटों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी मां के प्रोफेशन को अपनाया। ज्यादातर बेटे पिता के प्रोफेशन को अपनाते हैं?
मेरी मां भी दुर्लभ एवं खास हैं। इस देश में कितनी मां हैं, जो किसी प्रोफेशन में हैं। मैं तो कहूंगा कि मेरी मां खास और दुर्लभ हैं। एक सुपर स्टार और मां ... ऐसा रोज नहीं होता। मेरी मां निश्चित ही खास हैं। उन्होंने दोनो जिम्मेदारियां बखूबी निभाई।
मां के प्रोफेशन में आने की क्या वजह है?
बचपन में मुझे क्रिकेट का शौक था। कुछ समय खेलने के बाद मुझे लग गया था कि मैं देश का कैप्टन नहीं बन सकता। इतना टैलेंट भी नहीं था। पढ़ाई में मेरी रुचि नहीं थी। कोई भी चीज अच्छी नहीं लगती थी। फिल्मों के बारे में सोचा तो यह बहुत ही एक्साइटिंग लगा। फिल्मों में नियमित बदलाव होता रहता है। रोल बदलते हैं, लोकेशन बदलते हैं, साथ के लोग बदलते हैं ... यह बदलाव मेरी पर्सनैलिटी को बहुत जंचता है।
फिल्म निर्माण के साथ जुड़ा एडवेंचर और बदलाव ...
जी कभी रात में काम कर रहे हैं, कभी दिन में ... कभी पनवेल में तो कभी लंदन में। कभी इनके साथ तो कभी उनके साथ। यह सब अच्छा लगता है। डेली रूटीन मुझे बचपन से बहुत पकाता था।
मतलब दस से पांच की नौकरी और पांच दिनों के टेस्ट मैच जैसे रूटीन में आप की रुचि नहीं थी?
टेस्ट मैच को इसमें शामिल न करें। मैं क्रिकेट बहुत पसंद करता हूं। वह तो मेरे खून में है। नौकरी मैं नहीं कर सकता था। लोखंडवाला से रोज वर्ली जाना और आना ... नहीं यार, मेरे बस का नहीं था। मेरी रुचि नहीं थी।
कुछ मकसद रहा होगा फिल्मों में आने का?
मैं इस प्रोसेस का आनंद लेना चाहता था। बचपन से फिल्में देखता रहा हूं। मैं फिल्ममेकिंग के प्रोसेस का हिस्सा बनना चाहता था। क्लिंट इस्टवुड की फिल्में देख कर बड़ा हुआ हूं।
बचपन में कितनी हिंदी फिल्में देखते थे?
ज्यादा नहीं। मां की फिल्में देख कर बहुत दुखी हो जाता था, क्योंकि बहुत रोना-धोना होता था उनकी फिल्मों में।
आप जो सोच कर फिल्मों में आए थे, वह सब अचीव कर लिया।
नहीं, अभी नहीं किया है। थोड़ा-बहुत किया है। बाकी अब प्रोडक्शन में आने के बाद कर रहा हूं। एजेंट विनोद के साथ उसे अचीव करना चाहता हूं।
कोई भी एक्टर जब डायरेक्टर या प्रोड्यूसर बनता है तो उसके दिमाग में रहता है कि मुझे अभी तक जो मौके नहीं मिले, उन्हें हासिल करूंगा। या फिर उनकी कुछ खास करने की इच्छा रहती है। आप क्यों निर्माता बने?
निर्माता बनने की यही वजह है। क्रिएटिव कंट्रोल मेरा रहे। कैसी फिल्म बनानी है। पोस्टर कैसा होगा? और ऐसे रोल जो हमें नहीं मिल पा रहे हैं, उन्हें हम खुद बनाएंगे। जैसे एजेंट विनोद, जैसे लव आज कल ...
आप कैसे तय करते हैं कि मुझे यह रोल करना चाहिए या वह रोल करना चाहिए? अपनी बनी हुई छवि से प्रभावित होता है यह फैसला या फिर दर्शकों ने जिसमें पसंद कर लिया ...
मेरी छवि क्या है? सलाम नमस्ते और हम तुम के चॉकलेट हीरो की छवि ़ ़ ़ लेकिन मैंने ओमकारा किया और लोगों ने मुझे पसंद किया। रेस अलग फिल्म थी। दोनों ही फिल्मों में मेरे रफ रोल थे, लेकिन दर्शकों ने पसंद किया। मुझे लगता है कि मैं दोनों कर सकता हूं।
एक विकासशील देश में एक्टर होना कितनी बड़ी बात है और इस के क्या सुख हैं?
बहुत बड़ी बात है। कितने लोग एक्टर बन पाते हैं इस देश में। कितनी समस्याएं हैं। बिजली नहीं है। म्युनिसिपल ऑफिस जाओ। हम बहुत ही भाग्यशाली हैं। हम किसी लाइन में खड़े नहीं होते। दर्शक हम से ज्यादा मांग नहीं करते। आप अच्छे लगो ... तो आधी लड़ाई खत्म। अच्छे लगने के लिए जिम जाना और कसरत करना जरूरी हो जाता है।
एक्टर होने के लिए और क्या चीजें जरूरी हैं?
बहुत चीजें जरूरी हैं। लुक और शरीर तो अच्छा होना ही चाहिए। साफ दिमाग हो, जो आंखों में नजर आता है। आप साफ दिल हों। दुनिया और जिंदगी की समझदारी होनी चाहिए। मेरे हिसाब से कैरेक्टर और पर्सनैलिटी अच्छी होनी चाहिए। भारत में बच्चे सब सुनते, देखते और पढ़ते हैं कि सैफ ने ऐसे किया ... हम लोग रोल मॉडल बन जाते हैं। हमें सावधान रहना चाहिए। एक जिम्मेदारी होती है।
इस जिम्मेदारी से आप कितना बंधते या खुलते हैं?
एक्टर के तौर पर फर्क नहीं पड़ता। मैंने निगेटिव रोल भी किए हैं। हमारा ऑन स्क्रीन और ऑफ स्क्रीन इमेज होता है। हमें दोनों का ख्याल रखना चाहिए। मुझे अपने बारे में छपी-दिखाई सारी बातें पता चलती हैं। अभी मैं जिंदगी में च्यादा स्थिर हूं। पहले इतना नहीं था।
आप छोटे नवाब कहे जाते रहे हैं। उसके साथ कहीं न कहीं यह जुड़ा रहा कि देखें छोटे नवाब क्या कर लेते हैं? क्या आपको लगता है कि अपने परिवार की वजह से आप निशाने पर रहें?
परिवार की वजह से हमारा स्पेक्ट्रम बड़ा हो जाता है। इसके फायदे भी होते हैं, लेकिन परेशानियां भी होती हैं। अगर असफल रहे तो कहा जाता है कि देखो क्या किया? मां-बाप इतने काबिल और मशहूर, लेकिन बेटे को देखो। अगर सुपरस्टार बन गए तो कहा जाता है कि यह तो होना ही था। आखिर बेटा किस का है?
बीच में आप ने बुरा दौर भी देखा। किस वजह से इंडस्ट्री में बने और टिके रहे?
मेरे पास विकल्प नहीं थे। मैंने तय कर लिया था कि हिलना नहीं है। मैंने यहां आने के बाद अपने पुल जला दिए थे। लौटने का रास्ता नहीं बचा था।
पहली फिल्म के लिए इम्तियाज अली को चुनने की कोई खास वजह थी क्या?
बहुत सी बातें थी। उनके पास नया आइडिया था। मुझे वही पुरानी चीज नहीं बनानी थी। मुझे वह परफेक्ट लगे। मुझे लव स्टोरी फिल्म ही बनानी थी, लेकिन थोड़ी बोल्ड स्टोरी बनानी थी। देखें क्या होता है? फिल्म की कहानी इम्तियाज लेकर आए थे।
आपकी पहली डबल रोल फिल्म है। कितना मुश्किल या आसान रहा इसे निभाना?
यों समझें कि दो फिल्में एक साथ कर लीं। इसमें एक रोल में सरदार हूं। मुझे इस रोल में देखकर सरदार खुश होंगे। हम ने उसे बहुत आंथेटिक रखा है। इतना मुश्किल नहीं होता है डबल रोल करना। मैनरिच्म अलग रखना पड़ता है। दूसरे रोल में सरदार होने की वजह से मैनरिच्म खुद ही अलग हो गया।

क्या है लव आज कल?
यह रिलेशनशिप की कहानी है। आज के जमाने में संबंधों को निभाने में कितनी समस्याएं हैं। सातवें दशक का प्यार थोड़ा अलग था। लंबे समय के बाद मिलते थे। इंतजार रहता था। पहले शादी करते थे, फिर प्यार के बारे में सोचते थे। उस समय के प्यार को देख कर आज के लड़के-लड़की रश्क करेंगे। आज की प्रेम कहानी में करियर बहुत खास हो गया है। लड़कियों का रोल और समाज में स्थान बदल गया है। मां के जेनरेशन और हमारे जेनरेशन में फर्क आ गया है। आज ऐसा लगता है कि दो व्यक्ति एक साथ रहते हैं। दोनों की वैयक्तिकता बनी रहती है।
आप को खुद लव स्टोरी कितनी अच्छी लगती है?
मैं एक्शन, एक्शन कॉमेडी और थ्रिलर फिल्में च्यादा पसंद करता हूं। मुझे लव स्टोरी च्यादा अच्छी नहीं लगती। लव स्टोरी में काम करता हूं। मैं बनाना भी चाहता हूं, क्योंकि देश देखना चाहता है। मुझे व्यक्तिगत रूप से ओमकारा और रेस जैसी फिल्में पसंद हैं।
फिर भी हिंदी फिल्मों की कौन सी लव स्टोरी आप को अच्छी लगी है?
दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे, कयामत से कयामत तक, मैंने प्यार किया, दिल, ... आमिर खान की काफी फिल्में ... मां के समय की बात करूं तो आराधना और अमर प्रेम ...
प्यार में सबसे जरूरी क्या है?
सम्मान ... और भरोसा।
सचमुच प्यार बदल गया है?
प्यार का एहसास नहीं बदला है। प्यार दिखाने का तरीका बदल गया है। दबाव बदल गए हैं। पहले टीवी का एक ही चैनल था। अभी इतने चैनल आ गए हैं। आप एक चैनल से ऊबते ही दूसरे चैनल पर चले जाते हैं। प्यार भी ऐसा ही हो गया है। थोड़ी मुश्किल आती है तो भूल जाते हैं। दिलासा दिलाने के लिए काम का बहाना है।
क्या यह पश्चिमी प्रभाव की वजह से हो रहा है?
नहीं, यह अंदरूनी मामला है। हम कहते रहते हैं कि गोरे लोग बड़े खराब होते हैं और हम अच्छे हैं। वास्तव में हम भी उतने ही खराब हैं। हम भारतीय क्या हैं? मौका मिले तो अम‌र्त्य सेन की किताब पढें़। उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से विश्लेषित किया है। हम इटली के माफिया की तरह हैं। हम मुंह पर कुछ और, पीठ पीछे कुछ और बोलते हैं। फिल्म इंडस्ट्री में भी सामने बोलेंगे कि क्या फिल्म बनाई है और पीठ पीछे बोलेंगे कि क्या बकवास बनाई है? अगर बेटी किसी लड़के से मिलवा कर कहे कि इस से शादी करनी है तो उस लड़के से कहेंगे कि वाह तुम बहुत अच्छे हो। उसके जाते ही बेटी से कहेंगे कि खबरदार उससे दोबारा मिली। बहुत घटिया इंसान लगता है।
आप आम इंसान की तरह जी पाते हैं क्या? आप तो सुपर स्टार सैफ अली खान हैं?
मैं बहुत ही नार्मल हूं। चाट खना, पानी पुरी खाना ... कहीं भी जाओ। जिम पैदल जाता हूं। शुरू में लोग चौंकते हैं, फिर उन्हें आदत पड़ जाती है। मुंबई में दिक्कत नहीं है। दूसरे शहरों में कभी-कभी लोगों की वजह से दिक्कत होती है। लेकिन आप पैसे कमा रहे हो, तरक्की कर रहे हो तो लंदन चले जाओ। आप चाहते हो कि कोई न पहचाने तो वैसे शहर में जाकर घूमो, जहां कोई नहीं जानता।
क्या ऐसा लगता है कि आप समाज को जितना देते हैं, उतना ही समाज भी आपको देता है?
ज्यादा ही देता है। हम तो आज के राजा-महाराजा हैं। हमें नेताओं से ज्यादा इज्जत मिलती है। एक फोन करने पर सब कुछ मिल जाता है।
अपनी तीन फिल्में मुझे गिफ्ट करनी हो तो कौन-कौन सी देंगे?
ओमकारा, हम तुम और परिणीता।
फिल्म इंडस्ट्री के किन लोगों से आप मुझे मिलवाना चाहेंगे। वैसे लोग, जिनकी आप इज्जत करते हों और जो सचमुच आप को इंडस्ट्री के प्रतिनिधि लगते हैं?
डायरेक्टर में करण जौहर ... करण ने दुनिया को देखा और समझा है। एक वजह है कि वे ऐसी फिल्में बनाते हैं। वे लंदन देख चुके हैं। पेरिस उनका देखा हुआ है। फ्रेंच बोलते हैं। अमेरिका में रह चुके हैं। वे भारतीय दर्शकों को समझते हैं। उन्हें मालूम है कि यह फिल्म बनाऊंगा तो सबसे ज्यादा पैसा मिलेगा। इम्तियाज अली ... इम्तियाज आर्टिस्ट मिजाज के हैं। घूमंतू किस्म के हैं। काफी कूल और तेज है। श्री राम राघवन ... इतने अच्छे इंसान हैं और सिनेमा की बहुत अच्छी समझ रखते हैं। अनुराग बसु और विशाल भारद्वाज भी हैं। शाहरुख खान से मिलवाऊंगा। उनका दिमाग बहुत तेज चलता है और वे बहुत इंटरेस्टिंग बात करते हैं फिल्मों और दुनिया के बारे में। शायद आमिर से मिलवाऊंगा। लड़कियों में करीना से ... और भी बताऊं।
फिल्म इंडस्ट्री की सबसे अच्छी बात क्या लगती है?
डेमोक्रेसी ... आप यहां बुरी फिल्म नहीं चला सकते। यहां जो लोगों को पसंद है वही चलेगा। बाकी फील्ड में आप कुछ भी थोप सकते हैं, यहां नहीं। किसी का नियंत्रण नहीं है इंडस्ट्री पर। थिएटर में दर्शक आएं और तीन बार देखें तो फिल्म हिट होती है।
इस फिल्म की रिलीज के पहले आप की कैसी फीलिंग है?
यह फिल्म मेरे लिए बहुत जरूरी है। तनाव तो है। 31 जुलाई तक मैं बीमार न पड़ जाऊं? यह बच्चे के जन्म की तरह है। एक तो सुरक्षित डिलिवरी हो और बच्चा सही-सलामत हो। कुछ चीजें तो जन्म के बाद तय होती है?
लव आज कल को क्यों देखें?
इसमें नयापन है। इम्तियाज से संवाद ऐसे हैं, जो दो असली लोग बात कर रहे हों। एक लव स्टोरी है। आज के दबाव और कमिटमेंट के बारे में ... एक संदेश भी देती है फिल्म। हमेशा दिमाग की न सुनें, दिल की भी सुनें। इसमें कोई विलेन नहीं है। दिमाग ही विलेन है।

1 comment:

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

चवन्नी चैप से यहाँ कैसे?
यहाँ कुछ ख़ास करेंगे क्या?
बेहतर होता यह ब्लौग वर्डप्रेस पर बना लेते. कुछ अलग फील है उसका.
खैर, वहां तो हम आते ही थे, यहाँ भी आयेंगे.