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Monday, July 27, 2009

किस्मत पर भरोसा है तो मकाऊ चलें


-अजय ब्रह्मात्मज
आप क्या कभी गोवा गए हैं? अगर समुद्र तट के अलावा वहां की गलियों और पुराने गोवा में घूमने का अवसर निकाल पाए हों, वहां की इमारतें, सडकें, चर्च और मंदिर याद हों तो मकाऊ में उनकी झलक आप महसूस करेंगे। भारत के पश्चिम में स्थित गोवा और चीन के दक्षिण पूर्व में स्थित मकाऊ में यह अद्भुत समानता उनके समान औपनिवेशिक अतीत के कारण है। भारत और चीन के इन प्रदेशों पर कभी पुर्तगालियों का राज था। दोनों ही जगह पुर्तगाली धर्म, भाषा और संस्कृति के अवशेष अभी तक बचे हुए हैं। मकाऊ में कुछ ज्यादा, क्योंकि उन्होंने पुर्तगाली अवशेष और संपर्क को पर्यटन के आकर्षण में बदल दिया है।
सदियों तक पुर्तगाल के अधीन रहने के बाद मकाऊ चीन को वापस मिल चुका है, लेकिन हांगकांग के तर्ज पर चीन ने इसे विशेष प्रशासनिक क्षेत्र बना रखा है। समझौते के मुताबिक हांगकांग और मकाऊ की प्रशासनिक व्यवस्था में सुपुर्दगी के अगले पचास सालों तक कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए आर्थिक रूप से समृद्ध हांगकांग और मकाऊ में एक देश, दो व्यवस्था की नीति के तहत ज्यादा छेडछाड नहीं की है। दोनों ही प्रदेशों से चीन को पर्याप्त आमदनी होती है और इन प्रदेशों के अमीर चीन की अर्थव्यस्था को मजबूत करते हैं।
मकाऊ आने का सुगम मार्ग हांगकांग के रास्ते है। वैसे चीन के सीमांत शहर शनचन, क्वांगतुंग और लानचओ से भी मकाऊ पहुंचा जा सकता है, लेकिन उसके लिए पहले चीन जाना होगा। हांगकांग और मकाऊ जाने के लिए भारतीय नागरिकों को पहले से वीजा लेने की जरूरत नहीं पडती। हांगकांग एयरपोर्ट पर आसानी से वीजा मिल जाता है। हांगकांग से मकाऊ के लिए फेरी लेनी होती है। हांगकांग एयरपोर्ट से बंदरगाह तक बसें आती-जाती हैं। हांगकांग से मकाऊ की फेरी यात्रा का अपना आनंद है। नीले लहराते समुद्र पर फिसलती फेरी और दूर-दूर तक फैला पानी का साम्राज्य.. 15-20 मिनट की दूरी से मकाऊ के आलीशान होटल झिलमिलाने लगते हैं। मकाऊ जैसे-जैसे नजदीक आता जाता है, वैसे-वैसे शहर की निशानियां स्पष्ट होने लगती हैं।
मकाऊ में जेटी से बाहर निकलते ही रिक्शे पर ऊंघते रिक्शा चालकों को देख कर अजीब सा सुखद एहसास होता है। तीन पहियों की मनुष्यचालित यह सवारी अत्याधुनिक मकाऊ में सांस्कृतिक विरासत के तौर पर बचा कर रखी गई है। विदेशी यात्री कौतूहल से रिक्शे पर बैठने का आनंद लेते हैं। मकाऊ में मुख्य आबादी चीन मूल के नागरिकों की है। दूसरी जाति और राष्ट्रीयताओं के दस प्रतिशत लोग ही यहां रहते हैं। वैसे मकाऊ चीन का हिस्सा बन चुका है, लेकिन मुख्य भूमि चीन के नागरिकों को मकाऊ आने की आजादी नहीं मिली है। उन्हें विशेष अनुमति लेनी पडती है।
भारतीय मूल के मकाऊ पर्यटन विभाग के कर्मचारी अलोरिनो नोरुयेगा ने रोचक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जो चीनी अपनी विपन्नता के कारण मकाऊ नहीं आ पाते, वे एक विशेष स्टीमर से मकाऊ को घेर रही नदी में दो घंटे की यात्रा करते हैं। वे दूर से मकाऊ की संपन्नता देखते हैं और उसकी आलीशान इमारतों की पृष्ठभूमि में अपनी तस्वीरें खिंचवाकर संतुष्ट हो लेते हैं। मकाऊ विशेष प्रशासनिक क्षेत्र के आय का मुख्य स्रोत कैसिनो, होटल और पर्यटन हैं। हर साल लाखों विदेशी पर्यटक और यात्री यहां आते हैं। यहां के कैसिनो में 5 सेंट से लेकर करोडों डॉलर तक के दांव लगते हैं। पुरानी कहावत है कि जुआघर से हर जुआरी हार कर निकलता है। किसी रात कोई जीत गया तो अगली रात वह दोगुनी रकम हारता है। इसी दर्शन से मकाऊ के जुआघर आबाद हैं और यहां के कुछ होटलों में आप चौबीसों घंटे किस्मत का दांव चल सकते हैं। कहते हैं कि पिछले साल मकाऊ प्रशासन को इतनी आमदनी हुई कि उसने अपने प्रत्येक नागरिक को 6000 पताका (मकाऊ की करेंसी) दिए। एक पताका साढे सात रुपये के बराबर होता है।
यह मकाऊ में ही मुमकिन है, क्योंकि वहां की कुल आबादी 549,200 है। भारत के मझोले और छोटे शहरों की भी आबादी इस से ज्यादा होती है। मकाऊ कुल 29.2 वर्ग किलोमीटर इलाके में बसा है। तीन टापुओं के इस प्रदेश को यातायात के लिए पुलों से जोडा गया है। ज्यादातर पर्यटक और यात्री अत्याधुनिक मकाऊ की चकाचौंध में खो जाते हैं। आलीशान होटलों की सुविधाओं और कैसिनो के चक्कर में फंस गए तो आप मकाऊ की आबोहवा से अपरिचित रह जाएंगे। आलीशान होटलों में न तो जमीन दिखती है और न आकाश। हर प्राचीन शहर की तरह मकाऊ की अपनी खूबियां हैं, जिन्हें शहर में घूम कर ही समझा और महसूस किया जा सकता है। चंद डालर बचाने की कोशिश में किसी शहर की धडकन को सुनने से महरूम रहने की गलती न करें। मकाऊ जैसे छोटे शहर को आप दो-तीन दिनों में आराम से देख-सुन सकते हैं।
बेहतर तरीका है कि मकाऊ पर्यटन विभाग की बसें ले लें या फिर जिस होटल में ठहरें हों, वहां से निजी व्यवस्था कर लें। दूसरा आसान तरीका है कि किसी भी कोने से टैक्सी लेकर शहर के मध्य में आ जाएं और फिर नक्शे की मदद से पैदल घूमें। यकीन करें पैदल घूमते हुए आप शहर के रंग, गंध और स्वाद को अच्छी तरह महसूस कर सकेंगे। सेनाडो स्क्वॉयर के पास उतर जाएं तो ऐतिहासिक इमारतों, वास्तु और भग्नावशेषों के साथ आज के शहर को भी देख सकते हैं। यह मकाऊ का मध्यवर्गीय इलाका है। सडक के किनारे बने फूड स्टाल, बेकरी, किराना और कपडों की दुकानों से कुछ खरीद कर आप अपनी यादें समृद्ध कर सकते हैं। शाकाहारी होने पर थोडी दिक्कत हो सकती है, लेकिन अगर आप मांसाहारी हैं तो मकाऊ की खास व्यंजन विधि के जायके से खुद को वंचित न रखें।
मकाऊ की विशेष व्यंजन शैली है, जिसे मैकेनिज कहते हैं। यह चीनी, पुर्तगाली, भारतीय और अफ्रीकी पाक कला का स्वादिष्ट मिश्रण है। चीनी खाद्य पदार्थ, भारतीय मसाले और बनाने की पुर्तगाली विधि से एक नया स्वाद तैयार हो गया है। याद रखें कि इस व्यंजन शैली का आनंद सिर्फ मकाऊ में ही उठा सकते हैं। 2049 तक मकाऊ आज की ही प्रशासनिक स्थिति में रहेगा। उसके बाद संभव है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी यहां कुछ बदलाव करे। फिलहाल यहां की मुक्त अर्थव्यवस्था से लाभ उठाने के लिए विदेशी निवेशक धन लगा रहे हैं। मुख्य रूप से कैसिनो और होटल व्यवसाय में ही ज्यादा निवेश है। उधर भारत और चीन के बीच व्यापार बढने से चीन में लाखों भारतीयों का आना-जाना लगा रहता है। तफरीह के लिए उनमें से कई मकाऊ आते हैं और वे कैसिनो में अपना भाग्य आजमाते हैं।
पिछले महीने मकाऊ में आईफा अवार्ड समारोह का आयोजन हुआ। भारतीय फिल्म स्टारों की चहल-पहल ने मकाऊ को भारतीय मानस में बिठा दिया है। मकाऊ प्रशासन को उम्मीद है कि इस साल भारतीय पर्यटकों की संख्या में इजाफा होगा। क्या आप उनकी उम्मीद पूरी कर रहे हैं?