Sunday, November 28, 2010

सांस्कृतिक कलाइडोस्कोप है टोरंटो

-अजय ब्रह्मात्‍मज

टोरंटो शहर के हर कोने से सीएन टावर दिखाई पडता है। आधुनिक वास्तु का यह नमूना शहर की शान और आन है। टोरंटो घूमने आए हर पर्यटक की निगाह में इसकी ऊंचाई अटकती है। पहली सुबह ही हमें टोरंटो के स्थानीय गाइड ने बता दिया था कि आप अगर भटक जाएं तो इस टावर को देखें। इस से अपने ठिकाने की दिशा और दूरी का अनुमान लगा सकते हैं। सीएन टावर समेत टोरंटो के ज्यादातर दर्शनीय वास्तु और स्मारकों की उम्र सौ साल के आसपास ही है। एक नए शहर के पास सदियों का इतिहास नहीं होता। टोरंटो में सबसे पुराना वास्तु खोजने चलें तो उसकी तारीख 1794 निकलती है। इस शहर में सब कुछ 220 सालों के अंदर बना है। टोरंटो शहर का भ्रमण करा रही लिंडा ने आत्मगौरव के साथ कहा कि आप भारत के हैं। आप का इतिहास हजारों साल पुराना है। कनाडा अपेक्षाकृत नया देश है, इसलिए हमारे यहां 60-70 साल पुरानी इमारतें और चीजें भी पुरातात्विक महत्व की मानी जाती है। हम उसी पर गर्व करते हैं।

सांस्कृतिक क्लाइडोस्कोप

कनाडा के आधुनिक शहर टोरंटो को सांस्कृतिक क्लाइडोस्कोप कहा जाता है। यहां विभिन्न संस्कृतियां और जातियां इस तरह घुल-मिल गई है कि वेशभूषा, बोली और चाल-ढाल में भिन्नता होने पर भी कई समानताएं दिखती हैं। मशहूर ब्लॉगर समीर लाल कई सालों से टोरंटो में रहते हैं। वह इस शहर की तारीफ में कहते हैं, टोरंटो में हर संस्कृति के लिए पर्याप्त स्पेस है। एक-दूसरे की सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियां परस्पर हस्तक्षेप नहीं करती।ं बगैर किसी भाषण और नारे के समभाव और सौहा‌र्द्र दिखाई पडता है। इस बात की पुष्टि हमारे सांस्कृतिक गाइड ने भी की। उन्होंने बताया कि यहां एक ही गली में चर्च और मस्जिद है। मस्जिद के दरवाजे रविवार को चर्च के मास के लिए खोल दिए जाते हैं और जुमे की नमाज के लिए चर्च के अहाते में भी सजदा करने की जगह मिल जाती है। अपेक्षाकृत नए और आधुनिक देश को विरासत में कोई सांस्कृतिक कडवाहट नहीं मिली है, इसकी वजह से रोजमर्रा जिंदगी की मुश्किलें पैदा ही नहीं होतीं। टोरंटो एक प्रकार से विदेशियों से पटा शहर है। दुनिया के हर कोने से लोग यहां रोजगार की तलाश में आए। नए शहर ने उनकी पुरजोश अगवानी की और उनकी आजीविका का इंतजाम किया। इस दशक की शुरुआत में टोरंटो में चीनी मूल के नागरिकों की संख्या सबसे अधिक 4 लाख 50 हजार थी तो भारतीयों की संख्या भी 4 लाख थी। उनके अलावा अफ्रो-कैनेडियन, इथोपियन, सोमाली, ग्रीक, पोल, पुर्तगाली, वियतनामी और हिस्पानिक हैं। अगर विभिन्न देशों और जातियों का जमावडा एक साथ देखना हो तो हॉकी या फुटबाल के व‌र्ल्ड कप के समय किसी स्टेडियम के आगे खडे हो जाएं। कहा जाता है कि टोरंटो शहर में कम से कम सौ देशों के लोग खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। उन्हें किसी प्रकार का डर या खौफ नहीं है। वे अपनी भाषा बोलते हैं। इस शहर की आधी आबादी तो दूसरे शहरों में पैदा हुई है। वे सभी आकर यहां बसे हैं। उन्होंने टोरंटो को अपना घर बना लिया है। चीन, भारत, इटली के वासियों ने अपने मोहल्ले बना लिए हैं, जहां देश विशेष के खान-पान और पहनावे आसानी से मिल जाते हैं।

लिटिल इंडिया

टोरंटो में एक भारत भी है। यंग स्ट्रीट के पूर्व में ग्रीकवुड एवेन्यू और कॉक्सवेल एवेन्यू के बीच अचानक कानों में लता मंगेशकर की आवाज सुनाई पड सकती है। किसी गली में मुन्नी बदनाम हुई की स्वर लहरियां दरवाजा खुलते ही बाहर छिटक आती हैं। दोपहर और शाम का वक्त हो तो रेस्तरां के भारतीय किचेन से तेल-मसाले की भीनी और तीखी गंध से पैर अनायास उन रेस्तरां की ओर मुडते हैं। जाहिर सी बात है कि सामने भेलपुरी और गोलगप्पे का स्टाल लगा हो तो आते ही आप भारत में मुंबई की चौपाटी, दिल्ली के चांदनी चौक और बनारस की गलियां में चाट से मुंह बिचकाते रहे हों, लेकिन यहां मन मचल उठता है। विदेश की धरती पर गोलगप्पे और पान का मजा मजेदार तथ्य है कि लिटिल इंडिया में सिर्फ भारतीयों की दुकानें नहीं हैं। यहां पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, नेपाली और श्रीलंकाई भी मिल जाएंगे। वे सभी मिल-जुल कर भारत या यों कहें कि दक्षिण एशिया का आनंद उठाते हैं। एक स्थानीय दुकानदार ने बताया कि सबसे पहले किसी भारतीय ने यहां दुकान खोली थी। वह चल पडी तो उसके आसपास दुकानें बढने लगीं। फिर तो साडियों से लेकर सब्जियां-फलों तक के भारतीय स्वाद की चीजें नजर आने लगीं। यहां चीकू, लंगडा आम और इलाहाबादी अमरूद भी मिल जाता है। भारतीय व्यंजनों के रेस्तरां में सीटें बुक करवानी पडती हैं और दूसरे देशों के भोजनप्रेमियों की गाडियों की कतारें दिखती हैं। अद्भुत नजारा होता है लिटिल इंडिया का टोरंटो में बसे और रमे छोटे भारत का।

लहरों पर तैरते इंद्रधनुष

कभी टोरंटो का कार्यक्रम बने और वह महज 24 घंटे का भी हो तो नायग्रा फॉल्स जरूर जाएं। इस विशाल और प्रवाहपूर्ण झरने के छीटों और बौछारों से खुद को नहीं भिगोया तो धरती पर मौजूद एक परम सुख से वंचित रह जाएंगे। आप स्वयं सुरक्षित हों तो जलप्रवाह मुग्ध करता है। जलप्रवाह का दर्शन सोच को गति देता है और हमारे गरल जीवन को सुख का तरल स्पंदन देता है। हम उन क्षणों में वास्तविक दुनिया के छल-प्रपंच भूल जाते हैं। विशेष स्टीमर से जब पर्यटक अमेरिकन फॉल्स के पास से गुजरते हैं तो समय और रोशनी के हिसाब से इंद्रधनुष के मृगछौने आगे-पीछे दौडते और लहरों पर तैरते नजर आते हैं। नदी की सतह और झरने से गिरते पानी की फुहारों पर इंद्रधनुष की सतरंगी झिलमिल को कैमरे में कैद किया जा सकता है। यों लगता है कि अभी हाथ बढा कर उन्हें मुट्ठी में कस लें और जेबों में भर कर अपने घर लौटें। ऐसा न कर सके तो भी उन पलों की याद से वर्तमान के उदास क्षणों में आप झिलमिल उजास भर सकते हैं। नायग्रा अमेरिका और कनाडा की सीमा पर स्थित प्राकृतिक प्रपात है। इसका एक हिस्सा अमेरिका में पडता है और दूसरा हिस्सा कनाडा में अमेरिका न गए किसी भारतीय के लिए अमेरिकी जमीन देखने का एहसास भी रोमांचक होता है। साथ गए मित्रों में मैंने वह रोमांच देखा। ऐसा लगा कि वश चले तो वे स्टीमर से कूद कर अमेरिकी जमीन पर खडे होने का अनुभव ले लें। नायग्रा फॉल्स का अमेरिकी हिस्सा छोटा है। उससे लगभग ढाई गुना चौडा और डेढ गुना ऊंचा है कनाडा का हिस्सा, इसलिए वह ज्यादा खूबसूरत, ओजपूर्ण और प्रवाहमय लगता है। अगर आप सावधान नहीं हुए तो कामचलाऊ बरसाती पहनने के बावजूद झरने की फुहारों से तरबतर हो सकते हैं। थोडी देर के लिए उन फुहारों से कोहरे की चादर तन जाती है और झरने का फेनिल प्रवाह का दृश्य गड्डमड्ड होने लगता है। उम्र आडे नहीं आती है, क्योंकि सब कुछ भूल कर लोग किलकारियां मारते हैं और उस घडी को हमेशा के लिए अपने अंदर भर लेते हैं। लौटते समय आप नायग्रा ऑन लेक का आनंद उठा सकते हैं। साफ-सुथरी सडक के दोनों ओर बनी पारंपरिक दुकानों में ट्रैडिशनल सामान और कलाकृतियां मिलती हैं। हाथ से बनाए दशकों पुराने स्वाद के चाकलेट और केक मिलते हैं। नायग्रा ऑन लेक से आगे बढने पर टोरंटो के रास्ते में वाइनरी मिलती हैं। अंगूर लताओं के फैले खेतों के बीच बनी वाइनरिज में किसिम-किसिम की ह्वाइट वाइन और रेड वाइन का निर्माण होता है। यहां की आइस वाइन का विशेष नाम है। सर्दी में शून्य के नीचे के बर्फीले तापमान में लताओं में ही ठंड से पत्थर हो चुके अंगूरों को हाथों से तोडा जाता है और फिर विशेष प्रक्रिया से आइस वाइन को तैयार किया जाता है। इस आइस वाइन की मिठास वाइन के शौकीनों की अंतरात्मा तक को मीठा कर देती है।

फिल्मों का आकर्षण

कनाडा का टोरंटो शहर अपने फिल्म फेस्टिवल के लिए भी मशहूर हो चुका है। हर साल सितंबर महीने में आयोजित दस दिनों के इस फेस्टिवल में दुनिया के आधे देशों की फिल्में शामिल होती हैं। इस महीने में अगर आप टोरंटो में हों तो पूरा शहर सिनेमा में भिगा नजर आता है। दुकानों और गलियों में फेस्टिवल से संबंधित पोस्टर, बैनर और सामग्रियों को सजाया जाता है। फेस्टिवल के लिए निश्चित थिएटर दुल्हनों की तरह सजे होते हैं, जहां दुनिया भर से आए फिल्म प्रेमी और फिल्म समीक्षक शिरकत करते हैं। इस साल वहां किरण राव की धोबी घाट, अनुराग कश्यप की द गर्ल येलो बूट्स, आमिर बशीर की हारूद और सिद्धार्थ श्रीनिवासन की पैरों तले का प्रदर्शन हुआ। इन दिनों टोरंटो और उसके आसपास हिंदी फिल्मों की शूटिंग बढ गई है। हाल ही में अनीष बज्मी की फिल्म थैंक्यू की शूटिंग करने अक्षय कुमार, बॉबी देओल, सुनील शेट्टी सोनम कपूर,सेलिना जेटली और इरफान खान वहां पहुंचे थे। चूंकि टोरंटो में प्रवासी भारतीयों की संख्या बहुत ज्यादा है, इसलिए हिंदी फिल्मों के पर्याप्त दर्शक हैं।


2 comments:

विनीत कुमार said...

सेकुलर की अवधारण अगर समझनी हो तो एक बार टोरंटो घूम आइए। ऐसी जगहों पर कल्चरल स्पेस का विस्तार बहुत ही स्वाभाविक तरीके से होता है। उम्मीद है सिनेमा की लोकप्रियता के साथ ये कॉन्सेप्ट के स्तर पर भी कुछ नई समझ को जन्म देगा।

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा आलेख एवं पूर्णतः आपसे सहमत हूँ.

आगे

कभी टोरंटो का कार्यक्रम बने और वह महज 24 घंटे का भी हो तो नायग्रा फॉल्स जरूर जाएं।

-जरुर मगर यदि २४ घंटे न हों और मात्र ४ घंटे भी हों तो समीर लाल को फोन जरुर करें वो खुद आकर मिल लेंगे. :)